Sufism
(ताउम्र बस एक यही सबक याद रखिये, इश्क़ और इबादत में नियत साफ़ रखिये..!!!)
सूफी किसे कहते हैं?
''सूफ़ी'' शब्द ''सुफ'' से बनता है और अरबी भाषा में इसका मतलब ''सुफ्फा'' है, यानी ''दिल की सफाई।'' कुछ लोग इसे फ़ारसी शब्द ''सूफ'' से जोड़ कर 'पश्मीना पोश'' या ''कम्बल जैसा मोटा गरम कपड़ा पहनने वाले' से लेते हैं तो कुछ इसे 'सफ़' से जोड़कर बताया कि क़यामत के दिन पहली सफ़ (पंक्ति) में जो नेक जन्नती लोग होंगे, ''सूफ़ी हैं।''
दाता गंज बख्श अली हजवेरी लाहौरी रज़ियल्लाहू अन्हू ने अरबी के 'सुफ्फा' और हिंदुस्तानी शब्द ''सफाई'' से जोड़ उसका बयान यूँ किया है| सूफ़ी वो है जो अपने नश्वर अस्तित्व को परम सत्य की खोज में डूबा दे और दुनियावी ख्वाहिशों से मुक्त होकर आध्यात्मिकता और सत्यता से अपना रिश्ता जोड़ ले| सादगी, उच्च नैतिकता, न्यायप्रियता और दूसरों की इज़्ज़त करना सूफ़ी चरित्र की बुनियाद हैनियावी व शारीरिक इच्छाओं से बचना, आत्मा और अपनी ज़रूरतों पर क़ाबू रखना सूफ़ी की आदत में होता है। और सूफ़ी अपने को तपा कर मैं और तुम की बंदिशों से पाक हो जाता है।''
दाता गंज बख्श अली हजवेरी रज़ियल्लाहू अन्हू फ़रमाते हैं,'हया के फूल, सब्र व शुक्र के फल, अज़ व नियाज़ की जड़, ग़म की कोंपल, सच्चाई के दरख्त के पत्ते, अदब की छाल, हुस्ने एख़लाक़ के बीज, ये सब लेकर रियाज़त के हावन दस्ते में कूटते रहो और इसमें इश्क़े पशमानी का अर्क़ रोज़ मिलाते रहो इन सब दवाओं को दिल की डेकची में भरकर शौक के चूल्हे पर पकाओ जब पक कर तैयार हो जाए तो सफ़ाए क़ल्ब की साफी में छान लेना और मीठी ज़बान की शक्कर मिलाकर मोहब्बत की तेज़ आंच देना, जिस वक्त तैयार हो कर उतरे तो उसे ख़ौफे ख़ुदा के हवाले से ठंडा कर इस्तेमाल करना।'' ये ही वो महान नुस्खा है जो इंसान को इश्के ख़ुदा की भट्टी में तपा कर आज भी कुंदन कर सकता है सूफियों की इबादत, नेक अमल और उच्च नैतिक मूल्यों का व्यावहारिक जीवन होता है। ये लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं और सहाबा के नक्शे कदम पर अमल करते हुए, कुरानी की शिक्षाओं को अपना कर इबादत को अपने जीवन का उद्देश्य बना लेते हैं सूफियों का हर अमल सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की खातिर होता है। दुनिया के ज़ायके और हवस की खातिर नहीं।
हज़रत शेख शहाबुद्दीन सोहरावर्दी ने यूँ फ़रमाया कि सूफ़ीवाद के इल्म (ज्ञान) का औसत पालन, इश्क की इंतेहा और अताए इलाही है इस परिभाषा के अनुसार सूफ़ीवाद के तीन पहलू हुए:- इल्मी (ज्ञान), अमली (व्यावहारिक) और इश्क़े हक़ीक़ी (वास्तविक प्रेम) और गूढ़ रूप से यहाँ ये समझे कि ''आलिम का सूफ़ी होना ज़रूरी नहीं बल्कि सूफ़ी का आलिम होना ज़रूरी है इसके बारे में कुरान की ये हिदायत कि ''ख़ुदा से डरो जैसा डरना चाहिए ताकि इंसान गुनाहों से पाक रहे।'' मगर किताबे इलाही ही फ़रमाती है,''औलिया अल्लाह को ना कोई ख़ौफ न ख्रतरा, उनकी हिफ़ाज़त ख़ुद ख़ुदा करता है।' ये बात है सूफ़ी संतों के नेक अमल की।
आपके रास्ते को प्रकाश देने के लिए सात सूफी शिक्षण
1. Surrender to Love(प्यार करने के लिए समर्पण)
"I for myself you for yourself, we love each other but
we have
no expectations of each other."
2. Chant the Divine Name(दिव्य नाम का जप करें)
"Hearts become tranquil
through the remembrance of Allah."
3. Work with Your Dreams(अपने सपनों के साथ काम करें)
"The ancient Sufis turned to their dreams for guidance,
clarity,
and wisdom."
4. Enter into Devotion
and Service(भक्ति और सेवा में प्रवेश करें)
"The Sufi is a lover of God, and like any other lover, he proves
his love by constant remembrance of his Beloved. This constant
attention to god
has two effects: one outward and the other
inward."
5. Revel in Rumi(रुमी में खुलासा)
“Your is not to seek for love, but merely to seek and find all
the
barriers within yourself that you have built against it -
Rumi.”
6. Dying Before You Die(मरने से पहले मरना)
"To a Sufi, each moment could be the last. So it’s important
to be present in all of
life and to live as if you could die in this
moment, with your heart pure, your
actions good and your
relationships at peace."
7. Honor the Divine Feminine(दिव्य स्त्री का सम्मान करें)
"Woman is the radiance of God; She is not your beloved.
She
is the beloved. She is the Creator – you could say that she is
not created"
सूफ़िआना कलाम
काजर धारु किरकरा जो सुरमा दिया न जाए |
इन नैनन में पिय बसे दूजा कौन समाए, दूजा कौन समाए ||
छाप तिलक सब छीन,मोह से नैना मिलायके |
छाप तिलक सब छीनी,मोह से नैना मिलायके ||
प्रेमवटी का मधवा पिलायके
मतवारी कर दीन्ही मोह से नैना मिलायके
गोरी गोरी बैयाँ हरी हरी चूडियाँ
बैयाँ पकड़ हर लीनी मोह से नैना मिलायके
बल बल जाऊं तोरे रंगरजवा
अपनी सी रंग दीन्ही मोह से नैना मिलायके
खुसरो निजाम के बल बल जई है
मोहे सुहागन कीन्ही मोह से नैना मिलायके
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मुर्शिद से इश्क लड़ा कर
तो देखो
सजदे में सर को झुका कर तो देखो II
सजदे में सर को झुका कर तो देखो II
बन जायेगा तुम्हारा
गम-गुसार ये मुर्शिद,
खुदी इनके आगे मिटा कर तो देखो II
खुदी इनके आगे मिटा कर तो देखो II
हजूम राज़े-हक
का उमड़ रहा है सीने में,
ज़रा नजदीक मुर्शिद आ कर तो देखो II
ज़रा नजदीक मुर्शिद आ कर तो देखो II
तुमको फरेब की
दुनिया से क्या होगा हासिल,
ज़रा मोहब्बत में इनको आजमा कर तो देखो II
ज़रा मोहब्बत में इनको आजमा कर तो देखो II
जब उल्फत का मसीहा
है साथ अपने,
‘अमन’ इन पर अकीदा लाकर तो देखो II
‘अमन’ इन पर अकीदा लाकर तो देखो II
भटकी हुई रूह को
भी करार मिलेगा,
बज़्म-ए-मुर्शिद की आ कर तो देखो II
बज़्म-ए-मुर्शिद की आ कर तो देखो II
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खुदा जाने कहाँ से जलवाये जाना कहाँ तक है
वहीँ तक देख सकता है नज़र जिसकी जहाँ तक है
हम इतनी भी न समझे अक़्ल खोई दिल गवां बैठे
के हुस्नो इश्क़ की दुनिया कहाँ से है कहाँ तक है
ज़मीन से आसमान तक एक सन्नाटे का आलम है
नहीं मालुम मेरे दिल की वीरानी कहाँ तक है
ज़मीन से आसमान तक आसमान से ला माकन तक है
खुदा जाने हमारे इश्क़ की दुनिया कहाँ तक है
नियाज़ो नाज़ की रूदाद हुस्नो इश्क़ का क़िस्सा
ये जो कुछ भी है सब उनकी हमारी दास्ताँ तक है
ख़याले यार ने तो आते ही गम कर दिया मुझको
यही है इब्तेदे तो इन्तहा इसकी कहाँ तक है
सुना है सूफियों से हमने अक्सर ख़ानक़ाहों में
की यह रंगीन बयानी बेदम रंगीन बयां तक है
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मक्के गया गल मुक्दि नाहि,
पवें सौ सौ जुम्मे पड़ आयें,
गंगा गया गल मुक्दि नाहि,पवें सौ सौ जुम्मे पड़ आयें,
पवें सौ सौ गोते ख़ईया,
गया गया गल मुक्दि नाहि
पवें सौ सौ पॅंड पड़ आइए
बुल्ले शाह गल तां या मुक्दि
जदू मैं नू दिलों गवाये ||
कदी अपने आप नू पढ़या नई,
जां जां वर्दां मंदिर मासिता,कदी मन अपने विच वरया ही नहि,
ए वे रोज़ शैतान नाल लड़या
कदी नॅफ्ज़ अपने नाल लड़या ही नहि
बुल्ले शाह असमानी उड़ दिया फर्दा
जेडा घर बैठा वोनू फड़या ही नई||
जेडा घर बैठा वोनू फड़या ही नई||
लेना की टोपी सिर धड़के,
तसबी फिरी पर दिल ना फिरया,
लेना की तसबी हथ फड़के,
चिल्ले कित्ते पर रब ना मिलया,
लेना की छिल्या विच वर्केतसबी फिरी पर दिल ना फिरया,
लेना की तसबी हथ फड़के,
चिल्ले कित्ते पर रब ना मिलया,
बुल्या जाग बिन दूध नई जमदा,
पावे लाल होये कदकद के
राती जागे ते शैख़ सदावें
पर रात नू जागन कुत्ते तैं थे उत्ते
राती भौके बस ना कर्दे फिर जेया लरण विच सुत्ते
तैं थे उत्ते
यार ता बुहा मूल ना छड्डया पावें मरो सौ सौ जुत्ते तैं थे उत्ते
बुल्ले शाह उठ यार माना लाए नई ते बाज़ी लाई गये कुत्ते तैं थे उत्ते
यार ता बुहा मूल ना छड्डया पावें मरो सौ सौ जुत्ते तैं थे उत्ते
बुल्ले शाह उठ यार माना लाए नई ते बाज़ी लाई गये कुत्ते तैं थे उत्ते
ना मैं पूजा पाठ जो कीति
ते ना मैं गंगा नाहया
ना मैं पंज नामज़ा पद्रया
ते ना मैं तासबा खडकाया
ना मैं तीहो रोज़ें रखे
ते ना मैं चिल्ला गुमाया
बुल्ले शाह नू मुर्शद मिल्यया
उने ऐ वे जान बखस्या
ना मैं पंज नामज़ा पद्रया
ते ना मैं तासबा खडकाया
ना मैं तीहो रोज़ें रखे
ते ना मैं चिल्ला गुमाया
बुल्ले शाह नू मुर्शद मिल्यया
उने ऐ वे जान बखस्या
हज़रत बाबा बुल्ले शाह
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